बुधवार, 28 अगस्त 2013

गुडकैत टाका , आ कूदैत सोना .......



गाम सं टल्हू कक्का फ़ोन पर चिचियैत पुछला ,: "हौ ! ई टाका कौडी दं की सुनैत छियै सब दिन , कहैत छै , आय आर खसलै रुपैय्या के दाम । मार तोरि के , रुपैय्यो के दाम होइत छै की , आ कतय खैस पडैत छै सब दिन , तोरा सब के भेटैंत छ कि नहिं खसलाहा रुपैय्या । गाम में खईसतै कहियो त हमहूं सब खूब लुईट पीट अईनतौं । तोरा त बुझले छ आंधड बिहैर में आम के गाछी में हम केना आम लुईटय में सबके पछुआ दईत छलियै । गाम में त कतौ एक्को टा एकन्नीओ नय खसल पडल देखलियै हौ । दोसर ठाम त बाढि पानि में सेहो किछु दहा भसिया कं आयल हेतय , एतय त रौदी जान मारने छ । "

नैं यौ कक्का , रुपैय्या के दाम माने कि ओकर बजार मोल सेहो अंतरराष्ट्रीय बज़ार में , जाहि में अमरीका के डालर आ इंग्लैंड के पौंड के दाम के अनुसारे तुलना कायल जाइत छै । अहां नै बुझबै ई सब ई सब अर्थशास्त्र कहैत छै यौ कक्का ," हम जवाब देलियैन ।

"हं हं, अल्हुआ अर्थशास्त्र छै हौ कहक कि अनर्थशास्त्र छै । जई प्याज टमाटर के कियौ नईं पुछैत छल सेहो सुनैत छियै जे एतेक महग भ गेल जे आब ओकर ट्रक लुटल जाइत छै सुनलौं हैं । ठीके छै , जहब बेलगोभने सब हाकिम बनि गेल अईछ त यैह सब न हैत । तहि पर सं सुनलौं हैं जे सरकार फ़ेर सं कुनो योजना चालू कय रहल छै हौ । एतय त सरकारी योजना तहू में खाय पीबय बला सुनिये क बच्चा सब चित्कार मारि रहल अईछ कहैत अईछ अईसं नीक मांडे भात । "

" हं हौ , सुनलियै यै जे , सोना चानी खूब कुदि रहल छै । ऐं हौ , जहन रुपैया सार ओंघडैल जा रहल छै त सोना चानी केना कुदि क महग भ रहल छै हौ ? भ जाय दहक , जहन पाइए नय रहतै ककरो लग तक महग भ जै आ कि सस्ता भ जै , की फ़र्क पडतै । हं हं फ़ेर कुनो अर्थशास्त्र अनर्थशास्त्र के चक्कर हेतय " छोड ई सब गप्प ।

शनिवार, 8 दिसंबर 2012

गाम यौ गाम ....अहांके प्रणाम


कखनो क सोचैत छी की , ओ कुन अभागल घडी रहय जे गाम छोडि क अहि पापी पेट आ रोजगार द्वारे गाम सं निकल क अहि पाथर के जंगल में आबय पडल । आब त लगभग बीस साल हुव जा रहल अईछ आ जेना जेना उम्र बीतल जा रहल अईछ तहिना तहिना हृदय के भीतर एक टा टीस बराबर टहकैत रहैत अईछ । कनी दिन पहिने अचानक खूब जोर मोन खराब भेल , एहेन जे तीनो जोजन सुझाय लागल । कहैत छै न , जे अप्पन लोक दुईए घडी में बड्ड मोन पडैत अईछ । एकटा पाबैन तिहार में आ दोसर कुनो दुख पीडा में । हमरा सब सन खानाबदोश भ चुकल दिल्लियाहा सब लेल त दुन्नू में भारी आफ़त , गाम घर लेल मोन अउंढ मारय लागैत अईछ । पिछला तीन बरिस में माय आ बाबूजी के गेलां सं जेना बुझायल की गाम पर पुरखा के गाडन नींवे उखैड गेल । मुदा पिछला किछु दिन में होसपीटल के ओछैना पर पडल हमरा ग्राम रोग बेसी उद्वेलित कय देलक । हम तखने निर्णय कय लेलौं जे , ठीक होइते सबसं पहिने गामे दिस जायब । अहुना डाक्टरवा सब सेहो कहलक जे कनी हवा पानि बदलय लेल जा सकैत छी । हम मोने मोन कहलौं जे , धू बुडबकहा सब , हवा पानि बदलय लेल नहिं कहू हवा पानि के लेल , एतय हवा के नाम पर धुंआं आ पानि के नाम पर मरलाहा पईन । त पहिल फ़ुर्सत में गाम दिस भागि निकललौं । पंद्रह दीन में ओतय जेना नबका जीवन जीलौं । खेल खलिहान , अंगना दलान, हाट बजार तीमन तरकारी , कदीमा भांटा , जमीरी कागजी , पोखैर झांखैर ,बियाह बरियाती , द्विरागमन , एकादसा द्वादशा भोज , स्कूल , पंचायत भवन , धनकटनी सं खेत पटौनी तक , घुमैत रहलौं , देखैत रहलौं । अनलौं हैं सब किछ समेटने । फ़िलहाल त अहां सब खाली फ़ोटो के झांकी देखल जाउ । ओतय जील एक एक टा क्षण सं भेंट करायब अहां सबके , अगिला पोस्ट श्रंखला में ....




























गुरुवार, 24 मई 2012

बौआ कहिया आयब गाम यौ .....









बाट जोहि जोहि ,
मोन अईछ थाकल ,
मुंह देखय लेल,
मोन अईछ लागल,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ? 


बीतल बसंत पंचमी, आ,
गेल होली कहिया नय ,
सब पाबैन अहाँ बिनु बीतल ,
कुन कुन के लिय नाम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ? 


सहरसा बला काका एला,
दुमका बला आईब क गेला,
कहिया आयत अहांके बेटा,
सब पूछैत अईछ, सब ठाम यौ,
बौवा, कहिया आयब गाम यौ ? 


पाहिले लिखित छलौं चिट्ठी-पत्री,
कखनो पठ्बैईत छलौं सनेस,
आब त फ़ोन पर,
क लैएत छी छोट सन, राम राम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ? 


मानल, परदेस बहुत कमेलौं,
हमरो सब लेल खूब पठेलौं,
मुदा माय-बाप के प्रेम सं पैघ,
के द देत ,दाम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ? 


कलम-गाछी , अंगना-दालान,
बिनु अहाँ, सब सुनसान,
गाछ मजरल, बाट ताकय लगलौं,
आब त पाईक रहल अईछ, आम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ? 



आय मिथिलांचल के सब माय, अपना बौआ सब सं यैह  पूईछ रहल छैक । हमर मां के ई रचना बहुत पसंद छलैन हम हुनका पत्र में ई लिख के पठेने छलियैन । 

शुक्रवार, 30 दिसंबर 2011

धुर ई मोमो त दलपिट्ठी निकलल यौ




ई छी उसनल मोमो , चटनी के संग


दिल्ली में अबय के बाद जे किछ चीज़ देख क झटका पर झटका लागल ओहि में आन चीज़ संगहि एकटा सामग्री हमेशा रहल । दिल्ली में  भेटय बला खाद्य पदार्थ , नामे सब फ़ास्ट फ़ूड , त ओहिना हमरा सब एहेन सुलो मोसन के लेल त ओहिना ऊ सब एक टा अजगुते आइटम बनि जाइत अईछ । पहिल बेर , चाउमीन के प्लेट देख क चित्कार मारि कर कूदि उठलौं । ई की छी यौ ,बीच में बीच में पडल , बंधा कोभी आ शिमला मिर्च के कतरा सब जानल पहचानल छल ।मुदा ई मोटका डोरी सबके बीच में एकर ओकाइते की । खैर बाद में पता चलल कि , ई ताहि टाईम में कम्मे में बेसी भकोसय लेल एक टा कुल मिला ठीके ठाक आयटम छल । खैर , एकरा बाद बरगर , हॉट डॉग , कहू त गर्म कुकुर , नाम ने देखल जाऊ , आ किदैन कहादैन स पाला पडैतै रहल , अखनो पडि जाइत अईछ । 



किछ साल पहिलें स दैखैत छी त , सर्दी आ आब त गर्मियो में , ठेली लग मार धिया पुता , छौंडा ,बचिया सब , प्लेट भरि भरि क उसनल आइटम चटनी लगा लगा सुसुआ सुसुआ कर खा रहल अईछ ।नाम पता चलल मोमो । मोमो , इह , खैर जहन देखलौं त ई मोमो दू तरह सं देल जाय रहल छहल । एकटा उसनल ,जाहि द देखलियै त पता चलल कि भाप पर उसनल जाइत छै , आ एकटा तरल । दुन्नु संगे एकदम कउरू चटनी आ बुझायल जे बंधा कोभी के पात के उसनल पईन मसल्ला संगे , सूप जकां । एक दिन ई मोमो जी सेहो सामने आबि गेला । उसनल आ तरल दुनु । खेला पर देखलौं त ई मोमो जी के पेटो में उसनल बंधा कोभी भरल छल । गौर सं जहन अई मोमो के शकल देखलौं त चिंहुंक उठलौं । आ रे तोरि के ई त ..दल पिट्ठी अईछ यौ । मां बनबैत छल । चना दालि में अहिना आटा के पिट्ठी बना क उसीन क ओहि में देल जाइत छल । 



इ दलपिट्ठी के नबका वर्जन , आ बंद कोभी संगे सामन आयल मोमो खा क मोन मोमोआ जकां गेल । अहां की खेलौं हैं ....दलपिट्ठी कि मोमो यौ ???


सोमवार, 15 नवंबर 2010

चिट्ठी नहिं लिखल होयत ...पैर में फ़ोंका अईछ....हैयाह बजला झाजी




कहने छलौं न कि ,,जे मोन होयत आ जखनहिं मोन होयत ...धडाधड लिख देब ..लिय तो मैथिलि बजय लिखय , पढय वा सुनय लेल ..हम अहि बात के प्रतीक्षा करू कि ..पत्रा के हिसाब से देखियै कि आय ..मसान्त मसदघ्दा त नहिं अईछ ...मारू ..ई थोडे होय छै यौ ....आय हमरा एकटा खिस्सा ...गोनू झा के मोन आबि रहल अईछ ..। आब ई त हम नहिएं पूछब कि ..गोनू झा के ,, कि विद्यापति के ..जनैत छीयैन न ...ई त मैथिली के पर्याववाची सब छाईथ ।


एक बेर गाम के एकटा मसोम्मात काकी , के अपना बेटी के सासुर किछ समाद पठेबाक छ्लईन । कियो अबय जाय बला नहिं भेट रहल छलईन । थाकि हारि क ..बिदा भेली गोनू झा सं एकटा चिट्ठी लिखबबय लेल ।


हौ गोनू , एकटा चारि पांइत के चिट्ठी लिख दै ।

काकी अखैन नहिं , बाद में आयब ।

अगिला दिन फ़ेर काकी पहुंचली ।

वैह जवाब , नहिं काकी बाद में आयब ।

तेसर दिन , हौ गोनू तों त एना भरिया रहल छ जेना काकी तोरा सं , दुर्गा सप्तशती लिखा लेथुन ।

नहिं काकी , ई गप्प नहिं अईछ , हम लिख त दितौं मुदा हमरा पैर में फ़ोंका भ गेल अईछ ।

काकी सुनैत देरी ..भन्ना गेली । लगली डिरियाबय ....

पंचैती बसा देलाईथ , देखियौ ..यौ पंच लोकनि ...ई टटीबा गोनू एतेक दिन तक हमरा दौडाबईत रहल , आ बाद में कहैत अईछ जे पैर में फ़ोंका भ गेल अईछ , कहू त अहां सब ई उचित होय ।

ऐं हौ गोनू ..ई सत बात छियैक ??

हं पंच लोकैन ..ई त सत बाजि रहल छाईथ काकी ।

तहन त ई उचित गप्प नहिं छी अहां ऐना कियैक केलियै ?

गोनू झा बजला , " यौ त की गलत बजलौं । हमर अक्षर एहेन होईत अईछ कि हमर लिखल ..हमहीं टा पढि सकैत छी । तो चिट्ठी लिखला बाद काकी के बेटी गाम जाय क चिट्ठी पढय लेल जहन हमरा बजायल जईतै त हम केना जईतौं ..पैर में फ़ोंका अईछ ।


काकी सहित सब पंच सब मुस्का उठलैथ .......

मंगलवार, 9 नवंबर 2010

हमर पहिल मैथिल ब्लॉग : एकदम मैथिल एंगल सं ....देखल जाउ यौ भजार .....हईयैह ..बजला झाजी ..





बहुत दिन सं सोचैत छलौं जे एकटा मैथिली ब्लॉग शुरू करी । हालांकि हमर ग्राम्य जीवन एक दशको से कम रहल अईछ , मुदा ओतबे में हम मैथिल संस्कृति के बहुत करीब सं जानि लेलौं । मैथिली सं परिचय त शुरूए स छल आ आब जहन कि एतेक उम्र बीत गेल तहन हम ई कहि सकैत छी कि यदि मां अपना ज़िद पर ई नहिं करिताईथ कहिताइथ कि , हमर बच्चा सब तं मैथिलिए बाजत हमरा संगे त संभवत: आय जे जतेक अबैत अईछ नहिं अबितै । मां , चाची , मामी , मौसी सब संगे मैथिलीए में गप्प सब होईत रहल ।


ई ब्लॉग कियैक ....जहन मोने मोन सोचलौं कि एतेक रास ब्लॉग त हम लिखिए रहल छी त मैथिली में सेहो एकटा कियैक नहिं । एहेन गप्प नहिं अईछ कि हम मैथिली में पहिने नहिं लिखलौं हैं अतंर्जाल पर , मैथिली एवं मिथिला पर बहुत दिन तक सक्रियता सं लिखलौं किंतु बहुत रास कम्युनिटि ब्लॉग सं एकेदिन अपन सद्स्यता समाप्त क लय के निर्णय में इहो आबि गेल । फ़ेर हमरा इहो लागल कि ओतय के शुद्ध , उच्च कोटि के मैथिली साहित्य में हमर पोस्ट मखमल में टाट जेकां लागैत छल हमरा अपने ।

आब एतय हम जे मोन में आयत से लिखब ..कखनो ..खट्टर कका सं जुडल स्मृति , कखनो , गोनू झा के गप्प सब ..कखनो दरभंगा के काली मंदिर पहुंचब त कखनो राजनगर के काली मंदिर ..कखनो मधुबनी के कोतवाली चौक पर अहां हमरा पायब त कखनो कोठिया पट्टी टोल के दुर्गा पूजा में , कखनो झंझारपुर के रेलवे स्टेशन लग में त कखनो कुनौली बॉर्डर पर ..कहय के मतलब ई कि हम अपना संगे सब ठाम लय चलब अहां के ...। आ गामे कियैक दिल्ली , मुंबई में रहि रहल मैथिल सब के आजुक जीवन क्रियाकलाप , हुनका में आबि रहन बदलाव सब किछे अहां सब लेल एतय राखि देब । मैथिल के कठकोकाइंड सब सं ल क कठपिंगल सब के किस्सा सब किछु

त आय शुरूआत क रहल छी बहुत पहिने लीखल एक टा मैथिली रचना सं ....

देखल जाऊ

बाट जोहि जोहि ,
मोन अईछ थाकल ,
मुंह देखय लेल,
मोन अछि लागल,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ?

बीतल बसंत पंचमी, आ,
गेल होली कहिया नै ,
सब पाबैइन अहाँ बिनु बीतल ,
कुन कुन के लिय नाम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ?

सहरसा बला काका एला,
दुमका बला आईब क गेला,
कहिया आयत अहांके बेटा,
सब पूछैत ऐछ, सब ठाम यौ,
बौआ, कहिया आयब गाम यौ ?

पाहिले लिखईत छलों चिट्ठी-पत्री,
कखनो पठ्बैईत छलौं सनेश,
आब त फ़ोन पर,
क लैएत छी छोट सन राम राम यौ,
बौवा, कहिया आयब गाम यौ ?

मानल, परदेस बहुत कमेलौं,
हमरो सब लेल खूब पठेलौं,
मुदा माय-बाप के प्रेम सन पैघ,
के द देत दाम यौ,
बौवा, कहिया आयब गाम यौ ?

कलम-गाछी , अंगना-दालान,
बिनु अहाँ, सब सुनसान,
गाछ मजरल, बाट ताके लगलौं,
आब त पाईक रहल ऐछ आम यौ,
बौवा, कहिया आयब गाम यौ ?

आय मिथिलांचल के सब माँ , अपना बौआ सं यैह पूईछ रहल छैक...